अब ! बेचारे गुरुजी क्या करे ?

गुरुजी , जाहिर है कि नाम मे ही बहुत बड़ा सम्मान दिखाई देता है ! और हो भी क्यों नही ? देश, संस्कृति के विकास का आधार जो होते है गुरुजी :-

गुरुजी जिन्हें लोग  शिक्षक , शिक्षिका,  अध्यापक , अध्यापिका,  टीचर , मास्टर, मास्टर जी, माटसाब , सर, सरजी , मेडम , बहनजी , दीदी , मास्टरनी,  गुरुदेव,  कंजूस प्राणी आदि कई नाम से संबोधित करते है ।
अब गुरुजी बेचारे क्या करे

लेकिन हम यहाँ शिक्षक या गुरुजी शब्द का ही प्रयोग करेंगे
वैसे तो कई तरह के नाम के साथ कई तरह के काम की प्रतिभा भी पाई जाती है शिक्षक में,  लेकिन एक शिक्षक की मनोस्थिति सिर्फ शिक्षक ही जान सकता है

ये अलग बात है कि समाज के कथित ठेकदार, कथित नेता, कथित ब्यूरोक्रेट, कथित पत्रकार, कथित विद्वान और कथित गुरुजी  आदि लोग शिक्षक को अच्छी तरह समझने का भ्रम पाले रखते है,,
हालातो के मध्येनजर विशेष बात ये है कि गुरुजी  हर समय इन्ही कथित समझदार लोगो से आशंकित रहते है
एक तरफ तो गुरुजी को अपना कर्तव्य दिखाई देता है,,, लेकिन पीछे से एक भय हमेशा उनका पीछा करता रहता है
पता नही कब कौन आकर गुरुजी को कर्तव्यविमुख की उपाधि दे जाए

या फिर क्षेत्र का कोई भूल भटका कथित विद्वान आकर गुरुजी से एक ऑडिटर की तरह उल्टे सुलटे सवाल जवाब चालू कर दे

या कोई छिद्रान्वेषी नजरिये का अधिकारी आकर गुरुजी के किये कराये को एक झटके में शून्य घोषित कर दे

 क्या पता कब कौनसा पत्रकार आकर गुरुजी को पथभ्रष्ट साबित कर दे
और कई बार तो कई साथी कथित गुरुजी ही कथित पत्रकार की भूमिका निभाते हुए पाए जाते है.. और आजकल तो जिस किसी के पास भी स्मार्टफोन है .. वो आपने आप में स्वयम्भू पत्रकार है
आदि कई प्रकार के झंझावत से घिरे रहते है आजकल गुरुजी !

हर सामान्य नागरिक का ख्वाब रहता  है कि वो जीवन मे अखबारों की सुर्खियों में बना रहे,,,, लेकिन गुरुजी को ये ही डर बना रहता है कि कहीं अगले दिन अखबारों में वो खुद न आ जाए और उनकी सारी सामाजिक प्रतिष्ठा खतरे में न पड़ जाए

कई वर्षो से तो ये ट्रेंड भी चल रहा है,,, की मास्टर तो कुर्सी तोड़ने का ही काम करते है,,,, हर कोई मास्टर के लिए कुछ भी कह देता है,,,और हाँ कंजूस प्राणी तो ये करीब डेेेढ़ दशक पहले ही घोषित किये जा चुके है
ये अलग बात है कि लोग मितव्ययिता और कंजूसी में फर्क नही समझ पाते
शिक्षक के लिए रिश्वत लेना तो दूर ,,,उन्हें तो कभी रिश्वत लेने मौका ही नही मिल सकता

       सामान्य सी जिंदगी में विद्यालय और विद्यालय में शिक्षण यही शिक्षक की मुख्य दिनचर्या होती है,,,, लेकिन वास्तविकता कुछ उलट  है साहब ,,, सर्वे, BLO, पोषाहार, ये गणना, वो गणना, निर्माण, कम्प्यूटर-फीडिंग, लेखा, और भी अनगिनत जिम्मेदारिया रहती है ,, और बेशक इन जिम्मेदारियों को शिक्षक बहुत ही शानदार सलीके से निभाता भी है... पता ही नही चलता की कब वो लेखाकार, सर्वेयर, मिस्त्री, कम्प्यूटर ऑपरेटर व लिपिक बन जाता है

सीखने की लगन इतनी की ,, रिटायरमेंट के नजदीक पहुंचने वाले गुरुजी भी, जिन्होंने कभी कलर टीवी के रिमोट के बटन भी पूरे नही दबाये होंगे,,, वो आज महंगा वाला स्मार्टफोन लेकर उसमे दर्पण, दर्शन खोलकर रखते है.. व्हाट्सएप्प पर ही आदेश की प्राप्ति और तुरन्त पालना भी कर देते है
समय के साथ तकनीक को सीखने की ललक शिक्षक में बेशुमार है

सम्भवतः गुरुजी की इसी लगन व कर्तव्य के प्रति समर्पण की वजह से ही गुरुजी देेेश के विकास का आधार माने जाते है

लेकिन आजकल इस मॉडर्न युग में गुरुजी के सम्मान के प्रति लोगो में जो गिरावट नजर आती है वो चिंताजनक है.. फिर वो चाहे सामाजिक उदासीनता हो या फिर बढ़ती आलोचना 
आखिर क्यों ????

कारण अनेक है तो समाधान भी अनेक है कहीं सामाजिक पहलू जिम्मेदार है तो कहीं लोगो की विकृत मानसिकता ,,, खैर जो भी हो... इन सब के बावजूद भी शिक्षक अपनी गरिमा को बनाये रखते हुए निर्बाध अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर है 

लेख के अंत में एक अज्ञात विद्वान की पंक्ति प्रस्तुत है... जो की भूतकाल में गुरु के प्रति असीम विश्वास को प्रकट करती है

गुरु गूंगे गुरु बाबरे 
गुरु के रहिये दास |
गुरु जो भेजे नरक को,
 स्वर्ग की रखिये आस ||

समस्त बातों को ध्यान में रखते हुए फिर वही प्रश्न सामने आ जाता है की
अब बेचारे गुरुजी क्या करे ?

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( कुमार योगेंद्र )
ये लेखक के निजी विचार है लेखक एक शिक्षाविद है !

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Yes it's real situation

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